लकड़ी का घोड़ा - Best Motivational Story In Hindi

Lakdi ka ghoda
किसी राज्य में एक राजा रहता था राजा के दो बेटे थे दोनों एक गुरु के शिष्य होने के बाद भी उनमे से एक काफी समझदार और एक नासमझ था । राजा अपने नासमझ बेटे से काफी परेशान था । एक दिन उन्होंने राज्य के सभी विद्वानो को बुलाया और कहा की जो राजकुमार को शिक्षित कर देगा उन्हें इनाम मिलेगा और उन्हें उनके वजन के हिसाब से सोना भी दिया जायेगा। 

सभी ने बारी बारी से कोशिश की लेकिन नाकामयाब रहे, अंत में बारी आई एक बुजुर्ग की जिन्होंने दावा किया की वो राजकुमार को उनकी परेशानी बता सकते है जिसके बाद राजकुमार शिक्षा का असल मतलब समझ पाएंगे। 
पहले तो राजा ने सोचा की इतने सारे विद्वान जो काम नहीं कर पाए ये बुजुर्ग क्या कर पाएंगे लेकिन फिर भी उन्होंने उस बुजुर्ग को एक मोका दिया। 

उस बुजुर्ग ने दोनों राजकुमारों को बुलाया और उन्हें एक - एक लकड़ी का घोड़ा दिया साथ में 150 रूपए भी दिए और कहा की आप दोनों इस लकड़ी को घोड़े को अलग अलग बाज़ार में बेच आओ लेकिन ध्यान रहे कि लकड़ी के घोड़े 50 रूपए में जब तक बिक नहीं जाते आप वापस नहीं आ सकते और आप दोनों में से जो वापस आयेंगे उन्हें मैं शिक्षित करूँगा। 

दोनों राजकुमार तैयार हो गए और दोनों राज्य के अलग अलग बाज़ार में उस लकड़ी का घोड़ा बेचने निकल पड़े। उनमें से एक राजकुमार तो अगले ही दिन वापस आ गए लेकिन जो नासमझ था उन्हें वापस आने में एक महीने लग गए। 
जब वो वापस आये तो कोई उन्हें पहचान नहीं पा रहा था क्योकि उनके कपडे फट चुके थे और काफी पतले हो चुके थे। 

फिर उस बुजुर्ग ने उनसे पूछा आपकी ये दशा कैसे हुई ??

राजकुमार ने कहा - गुरुवर लकड़ी के घोड़े का मूल्य बहुत ज्यादा आपने बताया जिसके कारण वो बिक नहीं पाया सभी बाज़ार में उसका मूल्य केवल " दो आने " है।  और आने जाने में पैसे खर्च हो गए मैंने काफी दिन तक उस घोड़े को बेचने का प्रयास किया जिसकी वजह से सारा पैसा खाने पीने और ठहरने में चले गए मैं वहाँ से  पैदल ही आया हूँ और रास्ते में काफी कठनाई की वजह से मेरी यह दशा हुए है। 

फिर उस बुजुर्ग ने दुसरे राजकुमार से पूछा - आपने लकड़ी का घोड़ा कैसे बेचा और इतनी जल्दी वापस कैसे आ गए ??

दुसरे राजकुमार ने कहा - गुरुवर लकड़ी के घोड़े का मूल्य अधिक था मैंने बाज़ार में एक गरीब बच्चे को देखा उसके पास पैसे नहीं थे लेकिन उसे मेरा घोड़ा बहुत पसंद आया लेकिन वो बाज़ार में सिर्फ उस लकड़ी के घोड़े को देख रहा था। तो मैंने उसे वो घोड़ा दे दिया बदले में मुझे उसकी मित्रता मिल गई।  और मेरे पास 150 रूपए थे आने जाने में केवल 40 रुपय खर्च हुए तो अभी भी मेरे पास 110 रूपये बचे है आप चाहे तो लकड़ी के घोड़े का मूल्य 50 रूपए ले सकते है बाकि का पैसे मैं अपने उस गरीब मित्र को देना चाहूँगा। 

ये बात सुनकर बुजुर्ग ने कहा - मैं यही आपको समझना चाहता था जिसप्रकार वो लकड़ी का घोड़ा नहीं बिक सकता था और हम फिर भी उसे उसी मूल्य पे बेच रहे थे जिसका परिणाम आपके सामने है।  उसी प्रकार जब हम पढाई करते है और हमें कुछ नहीं समझ आता तो हम अपने बुद्धि का प्रयोग न करके उसे उसी प्रकार समझने की चेष्ठा करते हैं जैसा हमारे गुरूजी ने हमें बताया हो , इसीलिए जब कोई सवाल समझ न आये और आपसे वो हल न हो तो पहले उसे ध्यान से पढ़े और देखे आपसे क्या चूक हो रही है।  

नासमझ राजकुमार को अपनी गलती का एहसास हो गया और वो आगे चल के बहुत बड़ा विद्वान सिद्ध हुआ।

आपको इस कहानी से क्या सीख मिली कमेंट में जरुर बताये।

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